सुन लेगा
जो कहोगे क्या चुपचाप सुन लेगा अर्पण
वो इंसान है हो सकता मूर्ति कभी नही
कोमल संगमरमरी बदन तराशा खुदा ने
बिना खशबू कली दिल मे उतरती नही कभी
जो जन्म ले दब जाये दुनिया के वेभव मे
वो कली शान से खिलती नही कभी
जो जिन्दगी हम तुम से चाहते है खुदा
वो जिन्दगी क्यों कर हमे मिलती नही कभी
बेदर्द -बेवफा बिक जाते होंगे चंद सिक्को मे
मासूम , शर्मीली इंसानियत बिकती नही कभी
झुका दिया मेरे हालत ने मझे को अर्पण
मगर मेरी आबरू झुक सकती नही कभी
जिन्दगी बंट गयी हसीन ख्वाबो मे अर्पण
अर्पण अब वो सिमटे सिमट-ती नही कभी
तू तो चाहे तुझे छीन लू दुनिया से मै
तुझे छल से छिनु यह उमंग उमड़ती नही कभी
राजीव अर्पण
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