गिला
तुम से क्या गिला जो जिन्दगी रूठ गई
हम दीवाने होते ही है जिन्दा दबाने के लिये
मै अपनी गमगीन जिन्दगी पे रोया नही
इतने दर्दीले अश्क ना थे बहाने के लिये
सच मेरे महबूब हम दिल से रूठे ना थे
हम तो रूठे थे सिर्फ तुम्हे मनाने के लिये
उस प्यारे से मुखड़े पर गिला केसे करू
उसी ने मुझे पास बुलाया ठुकराने के लिये
हम क्या है हम खु भी नही जानते अर्पण
सुना है बांबरे ठहरे इस जमाने के लिये
तन्हा मे बे-रह्मिया जानी मुहब्बत की मैंने
अब मुझे प्यार ना कर और सताने के लिये
तेरी बे -वफाई ने सारी दुनिया बे-वफा बना दी
कोइ मेरे पास ना आये मुझे समझाने के लिये
बिना मकसद बिना बात गजले लिखता नही अर्पण
तुम्हे याद करने का बहाना बनाने के लिये
राजीव अर्पण
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