Sunday, September 18, 2011

अदाब को

अदाब को
बक्त ले गया तुझे और तेरी याद को
ओर क्या करे गा ,तू पहले से ही बरबाद को
दिल मे मुझे बुलाया उसने पनाह दी
भुला नही आज तक उसके अदाब को
क्या करू प्यार से छिन्नी है जिन्दगी
केसे करू गा पार उमर के लम्बे सिलाब को
तुम से मिलता हू ढेरो बाते करता हू
उफ़ क्या करू हकीकत नही उस ख्वाब को
भूल जा उसे अर्पण उसे भूल जा तू
पा ही नही सका उस सुंदर शवाब को
राजीव अर्पण

1 comment:

  1. I like this poem. I have also read other poems of Rajiv Arpan on current affairs, they are equally good.But, being time spotted, they are not here on his blog. Keep up the good work..
    Pooja Sharma

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