Friday, August 26, 2011

ओरत

ओरत
जज्बातों को मिटा दो
यह दोर दोरे दोलत है
मुहबत को ओरत का नाम ना दो
जो बिकी वो ओरत है
धर्म ,न्याय ,इमान और इन्सान
यहा सब कुछ बिक रहा है
यह मन के दोलत से अर्पण
इंसान की दूर - दूर तक शोरत है
राजीव अर्पण
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मायूसी
मायूसी बडती जाये गी
मायूसी की बात ना करना
दर्द भी हो जो सिने मे
हस देना आह ना भरना
प्यार भरी अदायो ने
अर्पण लुटा है कई बार
अब इन से प्यार ना करना
इन की खातिर ना मरना
राजीव अर्पण

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