Wednesday, September 28, 2011

जीने दो

जीने दो
जीने दो जीने दो आज मुझ को जीने दो
होठो से हसरत के जाम मुझ को पीने दो
वक्त के तकाजे ने सीना छलनी कर दिया
पास बेठो प्रीत से जख्मो को सीने दो
राजीव अर्पण
*********************
शिकवा
तुम से शिकवा शिकायत होगी
शायद मुझे तुम से मुहबत होगी
तुम से मिल ना पाया सनम
इस के पीछे मेरी ग़ुरबत होगी
राजीव अर्पण
**********
मुझ से इतनी
********** इतना गुरेज क्यों है
मेरे आस -पास तो रहते हो
*******मुझ से मिलने से परहेज क्यों है
राजीव अर्पण

Sunday, September 25, 2011

मानो या न मानो

मानो या मानो
*****गुजर गये वो निगाहों से यू ही *********
उनकी चरण धूलि का तिलक माथे पे लगाया ना गया
पत्थर बनना चाहा तो हम से दिल को पत्थर बनाया ना गया
**********निगाह मिली यू ही *************
*****उन से सर उठाया ना गया ********
****हम से सर झुकाया ना गया ********
****सिसक उठा दिल यू ही ********
****हम से उने बाहों मे उठाया ना गया *******
****उन से बाहों मे आया ना गया ********
*****मचल उठा दिल यू ही *******
**हम से ख़ुशी मे दिल रिझाया ना गया ***
**और गमी मे भी दिल रुलाया ना गया ***
********उठे अरमान दिल से यू ही ****
***हम से साकार उन को बनाया ना गया **
***मिटाना चाहा तो भी मिटाया ना गया **
********याद किया उने यू ही *******
****के सब को हाले दिल बताया ना गया *****
****और छुपाना चाहा तो छुपाया ना गया *****
राजीव अर्पण
यह सब मैंने १९//१९७७ को लिखी
और एक भी बदलाव नही किया
राजीव अर्पण

Thursday, September 22, 2011

फितरत होगी

फितरत होगी
मुझ से के मिल तुम्हे कश्दत होगी
शायद तुम को भी मुझ से मुहबत होगी
तू ना मिली मुझ को गम होगा जानेमन
कहा भूले गा गम मेरे जीने की फितरत होगी
अब तुम खोये हो जवानी के सरुर मे सनम
मिलना जब कभी मिलने की फुर्सत होगी
मुझे मिलने से तुम्हे क्या रोके है सनम
सुंदर हू संजीदा हू तेरे सामने मेरी ग़ुरबत होगी
गम उठाने का सिला तुम्हे ना देगा अर्पण
मेरा नसीब और यही उसकी कुदरत होगी
भगवान ,कुदरत ,नसीब किस को माने है
बस तेरे आगे यही ना कहने की जुरत होगी
राजीव अर्पण

Tuesday, September 20, 2011

सीधा यहा पर लिखता हू

सीधा यहा पर लिखता हू
*****तेरी यादो से खेलता हू
*****मै कब तन्हा झेलता हू
जिन्दगी का सफर
साथ मे तह करे हम
ख़ुशी हो या गमी हो
एक दूजे पे मरे हम
***मै कब किसी और से
***अपने नसीब मेलता हू
*****तेरी यादो से खेलता हू
*****मै कब तन्हा झेलता हू
हम साथ-साथ रहे गे
एक दूजे से कहे गे
सुख-दुख साथ मे सहे गे
कभी अलविदा ना कहे गे
***नही और को याद करता
***तेरे नाम की माला फेरता हू
*****तेरी यादो से खेलता हू
*****मै कब तन्हा झेलता हू
या रब मेरा हमदम
मुझे ही दे -दे ना
मेरा सब कुछ वही है
उसे ही दे-दे ना
***देख तुम्हे पाने के लिये
***खुदा को भी घेरता हू
*****तेरी यादो से खेलता हू
*****मै कब तन्हा झेलता हू
राजीव अर्पण
सच मे यह यहा सीधा ही लिखा
राजीव अर्पण

Sunday, September 18, 2011

अदाब को

अदाब को
बक्त ले गया तुझे और तेरी याद को
ओर क्या करे गा ,तू पहले से ही बरबाद को
दिल मे मुझे बुलाया उसने पनाह दी
भुला नही आज तक उसके अदाब को
क्या करू प्यार से छिन्नी है जिन्दगी
केसे करू गा पार उमर के लम्बे सिलाब को
तुम से मिलता हू ढेरो बाते करता हू
उफ़ क्या करू हकीकत नही उस ख्वाब को
भूल जा उसे अर्पण उसे भूल जा तू
पा ही नही सका उस सुंदर शवाब को
राजीव अर्पण

Thursday, September 15, 2011

जो होगा देखा जाये गा

जो होगा देखा जाये गा
जो होगा देखा जाये गा
अब अर्पण ना घबराये गा
गीत ख़ुशी के गाये गा
हर पल वो मुस्कराये गा
*****जो होगा देखा जाये गा
अर्पण जीत ही जाये गा
कभी हार कर नही आये गा
दीप ख़ुशी के जलाये गा
घर अपने को महकाये गा
*****जो होगा देखा जाये गा
राजीव अर्पण

Wednesday, September 14, 2011

स्वर्ग की राह

स्वर्ग की राह
नर्क छोड़ स्वर्ग की राह पे चल
नाकामियों पे मेरे दिल ना जल
कभी खुशिया तो कभी गम
यही तो है तेरे कर्मो का फल
कभी दुखो मे भटकता है मन
कभी सुखो के चश्मों से फूटता है जल
आज ही अभी जी ले अर्पण
क्यों टालता है जीना कल पे कल
मुसीबतों से लोहा लेना सीख
प्रभु ने दिया है तुझे बहुत बल
ना घबरा मुश्किलों को देख कर
होसले से हो जाता है सब का हल
आज हिंदी दिवस तथा ईंजिरिंग दिवस को
समर्पित जिस से यह संभव हुआ
राजीव अर्पण

Thursday, September 8, 2011

कुछ

कुछ
गम था बस एक तेरा गम था
दुनिया भर का गम था
और कोई हमदम ना था
क्या यह कम ना था
लोटा दे वो मेरा गम लोटा दे
छिन्न ले या रब ये सारी खुशिया
मुझे मेरा हमदम लोटा दे
राजीव अर्पण
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ना
रोना चाहिये था मगर रो ना सका
जो होना चाहिये था वो हो ना सका
राजीव अर्पण
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शायद
जिन्दगी के बाद शायद
मोंत इतनी हसीन है
के जहा से कभी कोई
वापिस ना आया
राजीव अर्पण

Sunday, September 4, 2011

भी ना सके

भी ना सके
हालत ऐसे हुये के कुछ हो भी ना सके
रोना चाहिये था मगर रो भी ना सके
वो कम सिन क्या अदाये थी उसकी
उन मे खोना चाहिये था खो ना सके
आपनी मजबूरी, विथाये बताये क्यों कर
उन संग विचरते रहे रात भर सो भी ना सके
कितनी चाहत थी दोनों दिल मे अर्पण
हम उनके हमारे 'हो' वो भी ना सके
ऐसी ही शर्ते थी इस जमाने की अर्पण
करना चाहते थे 'वो' जो हो भी सके
राजीव अर्पण

Thursday, September 1, 2011

पुकारा तूने

पुकारा तूने
मै चला आया जब भी पुकारा तूने
मसीहा की इबादत से गुजारा तूने
मै तो गरक था इन तंग गलियों मे
क्यों मेरा हाथ पकड के उभारा तूने
मै जल जाऊ ,मिट जाऊ फर्क क्या
मै जा रहा था फिर क्यों पुकारा तूने
मर ही रहा था आखरी सांसे तो थी
क्यों बचने के लिए दिया सहारा तूने
मै तो ना कुछ हु ,ना कुछ होंगा अर्पण
तोड़ ही लिया जगमगाता सितारा तूने
राजीव अर्पण
******************
परहेज क्यू
मुझ से इतनी तल्खी इतना गुरेज क्यू
पास तो आते हो मिलने से परहेज क्यू
राजीव अर्पण