Tuesday, July 5, 2011

समझाता हू

समझाता हू
खुद को ही सारा दिन समझाता रहता हू
उठती है जो तमन्नाये उन्हें दबाता रहता हू
तुम ने क्या किया दिल तुम्हे करना था क्या
इसी से इस की बाते दोहराता रहता हू
मै बुज दिल ने दिल के लिये कुछ ना किया
बे-बजह ही बेचारे को सताता रहता हू
मसीहा यहा मुझे बनाये गा कोन
मै तो खुद ही खुद को मिटाता रहता हू
दिल ने जब तमन्ना की मैंने जहर दिया
इस की हर तमन्ना को जहर पियाता रहता हू
कोई आशा का दिया जला के मुझे केसे रोशन करेगा
सर्द आहो से उसे मै बुझाता रहता हू
दिल कुछ करने को कहता है तो कर सकता मै नही
उलझाता रहता हू , इसे कहानिया सुनाता रहता हू
अगर मुझ से उठ कर कोई गलत बात पूरी करले
इसे याद दिलाता रहता हू ,तदफाता रहता हू
अश्को का पानी भी मैंने इसे कभी ना दिया
खून पिलाता रहता हू बहार मे मुरझाता रहता हू
अर्पण गम बताने से दिल होगा हल्का
किसी को नही बस इसी को गम बताता रहता हू
राजीव अर्पण

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