Sunday, July 31, 2011

आहे

आहे
फिकर है तेरी तमना की
मुझे इस जहा से क्या
अर्पण दिल की बात जाने है
उसे तेरी झूठी जुबान से क्या
राजीव अर्पण
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हमे क्या पता ख़ुशी होती क्या है
आपना तो वास्ता सदा गम से रहा
उन्होंने तो उड़ाया था मजाक मेरा
मेने बार-बार पूछा सनम क्या कहा
राजीव अर्पण
हम शिकवा बियान कर सके बे-दर्द जमाने
हम जी रहे है जला-जला के दिल के आशियाने
यह बात नही अब की ,जब से होश सभाला है
मेरे अहिसास मेरे जज्बात लगे है ठोकरे खाने
आवाज सिसकिया ,जज्बे शिकस्त से भरी आंखे
मेरी गमगीन दुनिया कोई ना समझे कोंई ना जाने
बसकर अर्पण अनजाने
राजीव अर्पण

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