निकलती है
तेरी आँखों से जो निकलती है तरंगे
मेरे दिल को झन-झोड़ जाती है
तेरे अंग -अंग से जो निकती है उमगे
दिमाग से दिल का रिश्ता तोड़ जाती है
तुम्हे पाने की ललक तुझे मिलने की तडप
अर्पण इतनी बेताबी मुझे नचोड़ जाती है
प्रिय पाठको को समर्पित
राजीव अर्पण
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