Sunday, June 12, 2011

चंद जख्म

चंद जख्म

चंद जख्मो के सिवा ,तू मुझे दे भी क्या सकता था

यह तो मै ही हू ,जो हर बार तेरा दिल रखता था

वो घड़ी,वो आलम,वो गुफ्तगू वो जज्बात झूठे थे

तेरे जाने के बाद ,सदियों भर ,रहा हाथ मलता था

तुम ने गम नही दिये ,बस ली अपनी खुशिया वापिस

अब भी जीवन गुजरता है ,पहले भी जीवन चलता था

तुने जो गिराया तो उसे उठने की आरजू ना रही

वरना वो सो बार गिरता था, गिर के संभलता था

तूने हथेली पे क्यों चुगाया प्यार का चोगा साजन

वह जख्मी था ,तो भी गम मे ख़ुशी से पलता था

उसके दिल मे क्यों रही सदा अन्देरी रातेअर्पण

वरना दुनिया मे हर -रोज सूरज निकलता था

रोशनी को ढूंढ़ता वो अँधेरे मे ही मर गया

सूनापन ,अँधेरा आदम को शरू से ही खलता था

उस दीवाने का हाल तो पूछ अरे ओ बे-दर्द

जो तेरे लिए जीता था ,तेरे लिये ही मरता था

अर्पण राईट गरूप को समर्पित

राजीव अर्पण


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