Tuesday, September 20, 2011

सीधा यहा पर लिखता हू

सीधा यहा पर लिखता हू
*****तेरी यादो से खेलता हू
*****मै कब तन्हा झेलता हू
जिन्दगी का सफर
साथ मे तह करे हम
ख़ुशी हो या गमी हो
एक दूजे पे मरे हम
***मै कब किसी और से
***अपने नसीब मेलता हू
*****तेरी यादो से खेलता हू
*****मै कब तन्हा झेलता हू
हम साथ-साथ रहे गे
एक दूजे से कहे गे
सुख-दुख साथ मे सहे गे
कभी अलविदा ना कहे गे
***नही और को याद करता
***तेरे नाम की माला फेरता हू
*****तेरी यादो से खेलता हू
*****मै कब तन्हा झेलता हू
या रब मेरा हमदम
मुझे ही दे -दे ना
मेरा सब कुछ वही है
उसे ही दे-दे ना
***देख तुम्हे पाने के लिये
***खुदा को भी घेरता हू
*****तेरी यादो से खेलता हू
*****मै कब तन्हा झेलता हू
राजीव अर्पण
सच मे यह यहा सीधा ही लिखा
राजीव अर्पण

1 comment:

  1. IN REALITY I WRITE DIRECT THIS POEM ON BLOG .EVEN NOT THINK I WRITE THIS BUT SOME IDEA IS IN MY MIND NOT KNOW WHAT SHAPE IT TAKEN THANKS GOD GIVE ME THIS GIFT OF WRITING RAJIV ARPAN

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