Tuesday, June 14, 2011

याद करता हू

याद करता हू
नाल अल्डा दे नाल ला के ,असी बड़े दुखी होये
अपने ही हथी आगे खट ललए ने टोये
उने हाल कादा पुछिया मखोल कीता
उनो हाल की सुनाईये जेड़ा कोल ना खलोये
उस्ताद कृषण लाल अन्पड
राजीव अर्पण
लिफाफे मै थे पुर्जे मेरे ख़त के
आखिर मेरे खत का जबाब गया
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हम दुया लिखते रहे वो दगा पड़ते रहे
एक नुक्ते ने मुझे महरम से मुज्रम बना दिया
दादा उस्ताद मुजरम दसूहा
राजीव अर्पण याद करता है
राजीव अर्पण

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