Sunday, June 19, 2011

घुट के

घुट के
दिल घुट के मर जाये गे , दुनिया की हवा मे
दवा क्या करे गी , असर तो होता है दुआ मे
हम से हमारे ख्वाबो की दुनीया ना बस सकी अर्पण
हमे तो मरना ही था अर्पण इस मदहोश हवा मे
राजीव अर्पण
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मजाक
हमे क्या पता ख़ुशी होती है क्या
अपना तो वास्ता सदा गम से रहा
उन्हों ने तो मेरा उड़ाया तथा मजाक
मैंने बार -बार पूछा सनम क्या कहा
राजीव अर्पण
जेसे आप होते है वेसी ही दुनीया नजर आती है
इंसान ,तब अपने को पागल समझता है जब उस
के विचार बदल जाते है ,और वह अपनी पिछली
जिन्दगी पे नजर दोडाता है
दिल को दबाना जिन्दगी से धोखा है
राजीव अर्पण

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