Saturday, May 21, 2011

शकिस्त

शकिस्त
इतना डर गया हू दर्दे शकिस्त से
अब कोई तमन्ना ब्यान नही करता
मोंत भी बन गई महबूब मेरी
सो बार मर के भी नही मरता
तुम क्या करो गे उजड़े चमन मे के
तभी तो मिलने के लिये आहे नही भरता
अपनी हर भूल का पश्चाताप किया है
अब की बार मै बाजी हरगिज नही हरता
क्यों डरता हू हर शक्श से हर बात से
जब अर्पण किसी अंजाम से नही डरता
राजीव अर्पण
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ख्याल कहा
वो तो खुदी नशे मे मस्त है
हम कहा ,हमारा ख्याल कहा
फिर भी चाहता हू दिलो जान से
होगा को अर्पण जेसा बे-मिसाल कहा
राजीव अर्पण

1 comment:

  1. I WRITE EVERY POEM BY SAY I , BECAUSE I TAKE MY CHAPTER IN MY HEART SO I USE I, EVERY ONE WHO READ FELL I AM MY POEM OF HY YOUNG GENERATION FELL THIS POEM YOUR AND I HOPE YOU LIVE IN OUR CULTURE ,SOME SHAME,HESITATION AND RESPECT OF OUR SOCIETY RAJIV ARPAN

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