Tuesday, May 17, 2011

कब तक यू

कब तक यू
कब तक यू ही दिल को बहकाते रहे गे
अंधेरो में दिल को सुलगते रहे गे
मेरी तकदीर खिज़ा का दामनछोड़
आखिर कब तक बिरहा गाते रहे गे
एक हो तो छुपाये,है छलनी जिगर मेरा
आखिर कब तक झूठा मुस्कुराते रहे गे
जख्म ही जख्म अब बचे है बाकि
कहा तक दामनमे उन्हें छुपाते रहे गे
मेरे मसीहा कभी हकीकत मे मिल
कब तक तेरी याद संग निभाते रहे गे
तू हमे कबूल करे या ना करे
तेरी महफिल मे सनम हम आते रहे गे
राजीव अर्पण

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