Sunday, May 8, 2011

बनाओ

बनाओ

उल्फत से भर के आंखे मुझे अपना ना बनाओ

जो महकते वफा से वो ख्वाब ना दिखाओ ,

दिलकश अक्श तो है तेरी झील सी आँखों मै

पा नही सगे गे मुझे बहने से बचाओ

यह ऐसी फिजा है जहा ना मुमकिन बफा है

अपने दिल से पूछो मेरा दिल ना दुखाओ

यह जो डोर चल रहा है डोर सिक्को का

ना आत्मा की सुनना ,नाआत्मा की सुनाओ

गुजर हो जाये गा मोहबत बिना ,रोटी मगर चाहिये

हम ग़ुरबत के मारों को मोहबत ना सिखाओ

पैसा मांगती है यह आज की मोहबत

पैसा अगर नही है तो इसे मुह ना लगाओ

आज की मोहबत मांगे एशो इशरत

कुछ पाक रहो के किसे अर्पण को न सुनाओ

राजीव अर्पण

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