Wednesday, May 18, 2011

गुनाह

गुनाह
मेने इतने गुनाह किये नही ,जितनी सजा पाई है
खुदा फिर क्यों तेरे इंसाफ की दुहाई है
मै मानता हू ,मै गुनागार हू सितमगार हू
फिर भी माफ़ कर दे ,मेने कोई बात नही छुपी है
जुल्म करवाये तेरी दी हुई बे-सबर भूखो ने
तब मुझे पता चला ना ,अब आत्मा पछताई है
मझे मेरा हमसफर देता ,बहार देता,खुमार देता
मेने तब -तब जुल्म किये जब कोई तमन्ना लडखडाई है
देख सबर छलक रहा है ,मुझे मेरा चमन दे -दे
हर हमजोली के चमन मै अर्पण बहार मुस्कुराई है
राजीव अर्पण

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