दिये
क्यों सोचे है तू उस बेदर्द के लिये
तू उस की खातिर वो अपनी खातिर जिए
तुम ने तमन्नाओं का गला घोट कर
आंसू आहो के संग पिए
दिल जलता रहा प्यार के बिना
बाती जले जेसे बिन तेल के दिये
ख़ुशी ना देता यह हक था उसका
मगर उसने दर्द मुझे क्यों दिये
अर्पण हस तू हस्ता क्यों नही
तेरे दिल के टुकड़े बता किसने किये
राजीव अर्पण
जरा ठहर
जरा ठहर ,मेरे तडपते हुए बेचें दिल
कही तो जीने का बहाना करने दे
क्या हुआ जो जिन्दगी ना मिली अर्पण
अब जेसे भी हो जीने दे ,मरने दे
राजीव अर्पण
my poetry become help full to young generation and who have young heart to love and feel love too much no money minded ,love each who love them also other this is my desire rajiv arpan
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