तमना
तमन्नाओ मे हम केसे बह जाते है ,
खुद से लाब्स्ता , अधूरे रह जाते है ।
जो बात आज तलक हम ने ना की सपनों मे ,
वो बात हम किसी कीमत पर गवारा नही ।
हालाते मज़बूरी मे उसे सह जाते है ।
वो रास्ते जिन पर हमने कभी चलना ना चाहा,
फिर भी वो रास्ते केर हम तह जाते है ।
हां इनकी चर्चा थी रातमहफिल मे सखी ,
बने बबरे ,दीवाने अर्पण यह जाते है ।
राजीव अर्पण
No comments:
Post a Comment