Friday, May 6, 2011

तमना

तमना

तमन्नाओ मे हम केसे बह जाते है ,

खुद से लाब्स्ता , अधूरे रह जाते है ।

जो बात आज तलक हम ने ना की सपनों मे ,

वो बात हम किसी कीमत पर गवारा नही ।

हालाते मज़बूरी मे उसे सह जाते है ।

वो रास्ते जिन पर हमने कभी चलना ना चाहा,

फिर भी वो रास्ते केर हम तह जाते है ।

हां इनकी चर्चा थी रातमहफिल मे सखी ,

बने बबरे ,दीवाने अर्पण यह जाते है ।

राजीव अर्पण

No comments:

Post a Comment