बक्श दे
आ गये है महफ़िल मे ,खुदा बक्श दे
सितमगर सितम न कर दुआ बक्श दे
भटक रहे है दुनिया की बे-रहम राहों मे
सहारा दे दिल मे पनाह बक्श दे
अटकी है मेरे होतो पे अकरी साँस
रहम कर मुझे ऐ खिज़ा ,बक्श दे
मिट रही है मेरी जो त्म्नाये दिल मे
अहसान कर उन को जुंबा बक्श दे
गमगीन गीत गाये है उम्र भर मेने
अब तो कोई गीत दिल रुबा बक्श दे
राजीव अर्पण
जिकर
हर पल लम्हा गम का जिकर है
रात गुजरी है तो अब दिन का फ़िक्र है
राजीव अर्पण
No comments:
Post a Comment