फनकार
हम फनकार है हम कब गम से घबराते है
आदाब,आदाब,आदाब हर गम को फरमाते है
हम गम के बंजारे दुनिया का दर्द अपनाते है
उस दर्द को अपना जान के दिल मै छुपाते है
फिर दे के लहू उसे अपने जिगर का
धडकन की ताल पे नये गीत नित बनाते है
वो जालिम क्या ,जुल्म भी ना रहे बाकी
ऐसे ही सुर -ताल मै दुनिया को सुनाते है
ऐ जालिम ,सोचनी है ,तो अपनी सोच
हम फनकार शरा से भी नही शरमाते है
तू फनकार के फन की ताकत नही जाने है
फन की ताकत से ,बाबले,राज-पाट पलट जाते है
सिधांत पलट जाते है विधान पलट जाते है
नेता पलट जाते है ,फिर नये हुक्मरान आते है
राजीव अर्पण
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