ताजा सोजिश
दिल मे ताजा सोजिश आई है
जिसे समझा था साजन हरजाई है
मेरी गजलो को दी जो सोजिश
मेरे साथ की उस ने भलाई है
प्रीत की तहजीब को जहर दे दिया
यह देख के आत्मा भी शरमाई है
जिसे मै समझा प्यार की इबादत
दरअसल वो उस की अंगडाई है
जिसे दिलो जान से समजा अपना
आखिर वो निकली अर्पण पराई है
अर्पण ना करे गा बे -रहमो का साथ
अब इसने फिर से कसम खाई है
राजीव अर्पण
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