बोले गा
तू लाख छुपा गम वो तो सर पे चढ़ के बोले गा
दिल आखिर दिल है वो कभी ना कभी तो डोले गा
तू किसी को ना बता अपनी मजबुरिया
जब कोई अपना मिला तू भेद दिल के खोले गा
बड़ा भारी है ग्रहस्ती का बोझ ,अगर वो मिल गया
तो तू भारी से भारी बोझ भी आराम से ढोले गा
दर्द दे के अब घबराना सुंदर कोमल साजन
वो आशिक है तेरा देखना दर्द मे हसे गा रोले गा
तुने दर्द ही दर्द क्यों लिख डाले अर्पण
उस के दर्द भी सहल उठे गे तेरी किताब जो खोले गा
राजीव अर्पण
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