ग़ज़ल
सनम होता शब्नाबी आँखें होती तो मैं जी लेता,
मेरे दर्द में कोई जान और भी रोती तो मैं जी लेता।
तड़पता हु सारी रात दिल दिए की तरह जला के,
तसब्बर मेरे में कोई हसीं,ना सोती तो मैं जी लेता।
चांदनी से मोती रौशनी लेके चमक भी देता है,
प्यार मेरे को मिल जाता कोई मोती तो मैं जी लेता।
मेरी आँखों ने माना है खुदा मसीहा पैगम्बर उसी को,
वो भी रखता मेरी जैसी ज्योति तो मैं जी लेता।
चलो अर्पण सब छोड़ो वो ना भी होती ना सही,
मेरी जवानी उस के तस्सबर में न खोती तो मैं जी लेता।
राजीव अर्पण
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