एहसासे वफा
एहसासे वफा क्यों दिलाने लगा है
ना जाने क्यों दिल सताने लगा है
बे-वफाई से जल के दिल राख हुआ था
अब वफा की मरहम लगाने लगा है
लुटा के मेरी जवानी की रंगत
दिल ही मुझ को समझाने लगा है
गम दिल ने उठाया ,मेरी हस्ती मिटा के
गम मिटा के अब अपनी हस्ती मिटाने लगा है
ख्वाबो का चमन आखिर महकता कब तक
आखिर वो चमन मुरझाने लगा है
दिल पहले मुझ से फिर मेरी जिन्दगी से उलझा
अब खुद ही खुद से उलझाने लगा है
मुझे तो भूल गया था गिर के संभलना
यह आज मुझे कोन उठाने लगा है
अपने इश्क पे अर्पण कभी पछताया ना था
आज यह इश्क पे क्यों पछताने लगा है
राजीव अर्पण
****************
No comments:
Post a Comment