कहरा बदन
कल से पीउगा नही तेरा नाम ले के
तेरा कहरा बदन ,कमजोर हुआ जाता है
जलता हू मै तुमे जलाने के लिए नही
तेरा हर जुल्म मुझे तो भाता है
ना तुन्हें छोड़ सकता हु ,ना पा सकता हू
औ मेरे साजन यह केसा अपना नाता है
तल्खिया तेरी ,मुझे तुम से दूर करती है
मगर तेरा चेहरा फिर मुझे लुभाता है
कहे पे पछता ना ,सुने पे मुस्कुरा ना
तू क्यों तडपता है क्यों मुझे सताता है
राजीव अर्पण
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