साँस रुक-रुक के चलने लगी है ,
जेसे-जेसे शाम ढलने लगी है ।
सुबह तेरे आने की आशा थी मुझ को ,
सूरज के साथ ढलने लगी है ।
तेरी यादो के मन्दिर मे चला हु ,
यह दुनिया बेगानी लगने लगी है ,
देख तेरे बिना जिन्दगी नही अपनी ,
यद् किया तम्नाये मचलने लगी है ।
तमन्ना की आँखों मे खून आ गया है ,
यह तडप कर जब से जलने लगी है ।
भुला तुम्हे तो जिन्दगी भूल गई,
जिन्दगी बेवफा क्या करने लगी है ।
बे-बफा दिल तुमे कभी कहता नही है ,
सदा मेरी ही कमिय उभरने लगी है ।
बस दर्दीली ग़ज़ल बस कर अर्पण ,
फिजाये भी सिसकिया भरने लगी है ।
राजीव अर्पण
No comments:
Post a Comment