एहसान
मर जाता है यह बशर एहसान से क्यों कर
जब की जुल्मो से यह मरता नही कभी
आहे भरता है साजन से मिलने को अक्सर
जब की दुश्मन के लिये आहे भरता नही
दुश्मन से तो यह डरता नही कभी
उसके सामने बाजी हरता नही कभी
उसने प्यार से लुटा है जीवन मेरा
यह जालिम के जुल्म से डरता नही
जुल्म सह कर यह जवान हुआ अक्सर
प्यार से मरा जुल्म से मरता नही कभी
राजीव अर्पण
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