ग़ज़ल
अश्को ने मेरे आके मुझे थाम लिया है,
जो कर न सका कोई वोह काम किया है।
दर्दे जिगर से मैं तड़प रहा था कब से,
एक ख्रोशे दर्द ने आराम दिया है।
दिल में जो नमर्ता की तस्वीर बसी है,
ढूंढ़ता फिरता हु मेरा कहा पिया है।
मुझसे खफा होके प्यार मांग रहा है,
मैं खुदपरस्त हु तो मेरा जवान जिया है।
सुख के लिए बुतपरस्ती नहीं करता,
मदहोश है परेशां है ये अर्पण मिया है।
राजीव अर्पण
प्यार
प्यार कोई चीज़ न सही,
दिल का सुकून तो है।
इसका कोई सिद्धांत ना सही,
एक लंबा मुज्बून तो है ।
उदित वशिष्ट को समर्पित
राजीव अर्पण ।
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