Thursday, May 5, 2011

ग़ज़ल

ग़ज़ल

जब वायदे मोहब्बत याद आते होंगे ,

वो अपने कर्म पे पछताते होंगे ।

आईना उनसे बिन बात नही टूटा,

उनके नक्श अल्फाज मेरे गुनगुनाते होंगे ।

ख्वाबो को भूलना इतना आसन नही अर्पण ,

मिल के जो ख्वाब सजाये थे तडपाते होगे ।

जिन्दा है इस झूठे से एहसास से ,

कभी ना कबकी हम भी उन्हें याद आते होंगे।

मिल के गए थे जो गीत वफा के अर्पण ,

उनके होठो पे आ सिसक जाते होगे ।

अच्छे है , अच्छे है "अर्पण" के बिना,

आखिर वो दिल को समझाते होंगे।

राजीव अर्पण

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