ग़ज़ल
जब वायदे मोहब्बत याद आते होंगे ,
वो अपने कर्म पे पछताते होंगे ।
आईना उनसे बिन बात नही टूटा,
उनके नक्श अल्फाज मेरे गुनगुनाते होंगे ।
ख्वाबो को भूलना इतना आसन नही अर्पण ,
मिल के जो ख्वाब सजाये थे तडपाते होगे ।
जिन्दा है इस झूठे से एहसास से ,
कभी ना कबकी हम भी उन्हें याद आते होंगे।
मिल के गए थे जो गीत वफा के अर्पण ,
उनके होठो पे आ सिसक जाते होगे ।
अच्छे है , अच्छे है "अर्पण" के बिना,
आखिर वो दिल को समझाते होंगे।
राजीव अर्पण
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