रतिया
तुम बिन रतिया केसे गुजरू
आ जा आ जा तुम्हे पुकारू
सेज भी सूनी दिल भी सूना
आ तेरे लिए मै सेज संवारू
शिंगार से अब दिल भरता नही
आ जा सारा शिंगार उतारू
कोमल बदन तेरा शीतल मन
उस पे प्रेम का रूप नितारू
दिल की ना होती मिटा भी लेती
यह दिल की है इसे केसे मारू
राजीव अर्पण
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