कब तक यू
कब तक यू ही दिल को बहकाते रहे गे
अंधेरो में दिल को सुलगते रहे गे
ऐ मेरी तकदीर खिज़ा का दामनछोड़
आखिर कब तक बिरहा गाते रहे गे
एक हो तो छुपाये,है छलनी जिगर मेरा
आखिर कब तक झूठा मुस्कुराते रहे गे
जख्म ही जख्म अब बचे है बाकि
कहा तक दामनमे उन्हें छुपाते रहे गे
ऐ मेरे मसीहा कभी हकीकत मे मिल
कब तक तेरी याद संग निभाते रहे गे
तू हमे कबूल करे या ना करे
तेरी महफिल मे सनम हम आते रहे गे
राजीव अर्पण
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